कभी शिवसेना के गढ़ थे ये क्षेत्र, अब BJP मैदान में
चैतन्य मरपकवार, मुंबई महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में 124 सीटों पर राजी होकर शिवसेना ने बीजेपी का छोटा भाई बनना स्वीकार कर लिया। बीजेपी ने सीटों की हिस्सेदारी में बाजी मारने के साथ ही शिवसेना को चार बड़े क्षेत्रों में एक तरह से बेदखल कर दिया है। पुणे, नवी मुंबई, नागपुर और नासिक में विधानसभा की 20 सीटें हैं, लेकिन शिवसेना के खाते में इन चारों इलाकों से एक भी सीट नहीं है। ऐसे में मुंबई और ठाणे के बाहर शिवसेना की मौजूदगी नजर ही नहीं आती है। मुंबई की 36 सीटों में से शिवसेना 19 और बीजेपी 17 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। वहीं, ठाणे में बीजेपी की एक सीट के मुकाबले शिवसेना के हिस्से में तीन सीटें आई हैं। सीट शेयरिंग के 164-124 फॉर्म्युले में में दोनों सहयोगी कुछ शर्तों पर भी सहमत हुए हैं। शिवसेना का कहना है कि उसे बीजेपी कोटे से विधान परिषद की दो अतिरिक्त सीटों का वादा किया गया है। आरपीआई और आरएसपी जैसे सहयोगियों को बीजेपी अपने कोटे में समायोजित करेगी। हालांकि बीजेपी ने साफ किया है कि वह मुख्यमंत्री पद शेयर नहीं करेगी। साथ ही शिवसेना को डेप्युटी सीएम पोस्ट भी नहीं दी जाएगी। पढ़ें: सामना में लिखा- लेना कम, देना ज्यादा हुआ राजनीतिक विश्लेषक जहां एक ओर इसे महाराष्ट्र की राजनीति में नए मोड़ के रूप में देख रहे हैं, वहीं शिवसेना के मुखपत्र सामना के संपादकीय में सीट बंटवारे को लेकर हुए समझौते का बचाव किया गया है। सामना में लिखा गया है, 'गठबंधन होने पर यहां-वहां चलता ही रहता है। शिवसेना के बारे में इस बार ये मानना पड़ेगा कि लेना कम और देना ज्यादा हुआ है। लेकिन जो हमारे हिस्से आया है, उसमें शत-प्रतिशत यश पाने का हमारा संकल्प है।' शिवसेना और बीजेपी के बीच तीन दशक पुराना प्यार और तकरार का रिश्ता रहा है। इस साल मई में लोकसभा चुनाव के नतीजे आने से पहले उद्धव की अगुआई वाली शिवसेना हमेशा बड़े भाई की भूमिका में रही। 2014 से पहले तक शिवसेना ने बीजेपी को 105 से 119 सीटों के बीच हिस्सेदारी दी। सियासी जानकारों का मानना है कि शिवसेना 2014 की तरह जोखिम नहीं उठाना चाहती है, जब सीट बंटवारे पर बातचीत फेल होने के बाद दोनों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था। पढ़ें: 'पहले की स्थिति से उलट हालात' एक राजनीतिक विश्लेषक ने हमारे सहयोगी मुंबई मिरर को बताया, 'यह पहले की स्थिति के उलट है। 2014 में, शिवसेना 288 सीटों में से 151 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती थी। मोदी लहर पर सवार बीजेपी ने शिवसेना के साथ काफी सीट बंटवारे पर काफी जद्दोजहद की। लेकिन शिवसेना सीटें देने को राजी न होकर अपनी मांग पर अड़ी रही। इसका नतीजा यह हुआ कि बीजेपी ने 122 सीटें जीतीं, जबकि शिवसेना ने 63 सीटें हासिल कीं।' 'खतरा मोल नहीं ले सकते उद्धव' शिवसेना के लिए इस बार का फैसला व्यावहारिक था। शिवसेना के एक पदाधिकारी ने कहा, 'एक ऐसे वक्त में जब बीजेपी मोदी लहर और हिंदुत्व लहर दोनों पर सवार है, उद्धवजी अलग-थलग पड़ने का खतरा मोल नहीं ले सकते। कांग्रेस-एनसीपी के साथ भी गठबंधन की कोई संभावना नहीं थी, क्योंकि वे दूर-दूर तक सत्ता में लौटने की स्थिति में नहीं दिख रहे हैं। उन्होंने हालात के हिसाब से फैसला लिया है, जैसा हम 2014 में नहीं कर सके थे।' पढ़ें: '100 से ज्यादा सीटें जीते तो लगाएंगे जोर' पार्टी के नेताओं का यह भी मानना है कि के चुनाव में उतरने के बाद उनकी बड़े अंतर से जीत सुनिश्चित करने के लिए गठबंधन अहम था। पार्टी पहले ही उन्हें अपना मुख्यमंत्री कैंडिडेट बताती रही है। इस बीच शिवसेना को पहली लिस्ट जारी होने के बाद अपने नेताओं की बगावत और इस्तीफों से भी जूझना पड़ रहा है। शिवसेना के एक नेता का कहना है, 'अगर हम अपना स्ट्राइक रेट सुधार लेते हैं और 100 से ज्यादा सीटों पर जीत दर्ज करते हैं तो हम मुख्यमंत्री और डेप्युटी सीएम के पद के लिए जोर लगा सकते हैं। हमें 100 सीटों के आंकड़े को पार करना होगा।'
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कभी शिवसेना के गढ़ थे ये क्षेत्र, अब BJP मैदान में
Reviewed by Fast True News
on
October 03, 2019
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