उस दिन ड्यूटी ना बदली होती तो जिंदा होता सेना का जाबांज ड्राइवर, पुलवामा अटैक बुक में चौंकाने वाला दावा
नई दिल्ली: पुलवामा में 14 फरवरी 2019 को आत्मघाती हमले की चपेट में आई बस के ड्राइवर जयमल सिंह को उस दिन गाड़ी नहीं चलानी थी और वह किसी अन्य सहकर्मी के स्थान पर आए थे। एक नई किताब में यह कहा गया है। भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के अधिकारी दानेश राणा वर्तमान में जम्मू कश्मीर में अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक हैं। उन्होंने पुलवामा हमले से जुड़ी घटनाओं पर ‘एज फॉर एज दी सैफ्रन फील्ड’ नामक किताब लिखी है जिसमें हमले के पीछे की साजिश का जिक्र किया गया है। हमले में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के 40 जवान शहीद हो गए थे। साजिशकर्ताओं के साथ व्यक्तिगत इंटरव्यू, पुलिस के आरोप पत्र और अन्य सबूतों के आधार पर राणा ने कश्मीर में आतंकवाद के आधुनिक चेहरे को रेखांकित करते हुए 14 फरवरी 2019 की घटनाओं के क्रम को याद करते हुए लिखा है कि कैसे काफिले में यात्रा कर रहे सीआरपीएफ के जवान रिपोर्टिंग समय से पूर्व, भोर होने से पहले ही आने लगे। नियम के अनुसार, अन्य चालकों के साथ पहुंचने वाले अंतिम लोगों में हेड कांस्टेबल जयमल सिंह शामिल थे। ड्राइवर हमेशा सबसे अंतिम में रिपोर्ट करते हैं। उन्हें नींद लेने के लिए अतिरिक्त आधे घंटे की अनुमति है क्योंकि उन्हें कठिन यात्रा करनी पड़ती है। राणा ने लिखा है, ‘जयमल सिंह को उस दिन गाड़ी नहीं चलानी थी, वह दूसरे सहयोगी के स्थान पर आए थे।’ जयपाल सिंह को ऐसे मिली उस दिन की ड्यूटी हार्पर कॉलिन्स इंडिया की ओर से प्रकाशित किताब में कहा गया है, ‘हिमाचल प्रदेश के चंबा के रहने वाले हेड कांस्टेबल कृपाल सिंह ने छुट्टी के लिए आवेदन किया था क्योंकि उनकी बेटी की जल्द ही शादी होने वाली थी। कृपाल को पहले ही पंजीकरण संख्या एचआर49एफ-0637 वाली बस सौंपी गई थी और पर्यवेक्षण अधिकारी ने जम्मू लौटने के बाद उन्हें छुट्टी पर जाने के लिए कहा था। इसके बाद जयमल सिंह को बस ले जाने की जिम्मेदारी मिली।’ पत्नी को फोन पर दी थी ड्यूटी बदलने की जानकारी राणा लिखते हैं, 'वह एक अनुभवी ड्राइवर था और कई बार राजमार्ग 44 पर वाहन चला चुका था। वह इसके ढाल, मोड़ और कटावों से परिचित था। 13 फरवरी की देर रात, उसने अपनी पत्नी को पंजाब में फोन किया और उसे अंतिम समय में अपनी ड्यूटी बदलने के बारे में बताया । यह उनकी अंतिम बातचीत थी।'जवानों में महाराष्ट्र के अहमदनगर के कांस्टेबल ठाका बेलकर भी शामिल थे। उसके परिवार ने अभी-अभी उसकी शादी तय की थी और सारी तैयारियाँ चल रही थीं। बेलकर ने छुट्टी के लिए आवेदन किया था, लेकिन अपनी शादी से ठीक 10 दिन पहले, उसने अपना नाम कश्मीर जाने वाली बस के यात्रियों की सूची में पाया। राणा लिखते हैं 'लेकिन जैसे ही काफिला प्रस्थान करने वाला था, किस्मत उस पर मेहरबान हो गई। उसकी छुट्टी अंतिम समय में स्वीकृत हो गई थी ! वह जल्दी से बस से उतर गया और मुस्कुराया और अपने सहयोगियों को हाथ हिला कर अलविदा कहा। उसे क्या पता था कि यह अंतिम समय होगा। ' जयमल सिंह की नीले रंग की बस के अलावा, असामान्य रूप से लंबे काफिले में 78 अन्य वाहन थे, जिनमें 15 ट्रक, भारत-तिब्बत सीमा पुलिस से संबंधित दो जैतूनी हरे रंग की बसें, एक अतिरिक्त बस, एक रिकवरी वैन और एक एम्बुलेंस शामिल थे। पुलवामा हमले के बाद, एनआईए, जिसे जांच का जिम्मा सौंपा गया था वह घटना की कड़ियों को जोड़ने में सफल नहीं हो रही थी । हालांकि फोरेंसिक और अन्य वैज्ञानिक साक्ष्यों के आधार पर प्रारंभिक जांच में कुछ सुराग मिले थे, लेकिन ये यह समझने के लिए पर्याप्त नहीं थे कि अपराधी कौन थे। जब ऐसा लगा कि एनआईए की जांच रुक गई है, तो एजेंसी को एक मुठभेड़ स्थल से एक क्षतिग्रस्त मोबाइल फोन मिला, जहां जैश-ए-मोहम्मद के दो आतंकवादी मारे गए थे। बरामद फोन में एक एकीकृत जीपीएस था जो तस्वीरों को जियोटैग करता था, जिसमें तस्वीरों और वीडियो की तारीख, समय और स्थान का खुलासा होता था। इस फोन की खोज ने पुलवामा मामले की गुत्थी को खोल दिया।
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उस दिन ड्यूटी ना बदली होती तो जिंदा होता सेना का जाबांज ड्राइवर, पुलवामा अटैक बुक में चौंकाने वाला दावा
Reviewed by Fast True News
on
February 13, 2022
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