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क्या बदल रही है कांग्रेस? पंजाब में सिद्धू और तेलंगाना में रेवंत, राहुल-प्रियंका की सहमति के बाद टूट रही परंपरा

नई दिल्ली क्या कांग्रेस में भी पुराने ढर्रे से हटकर एक अलग राह पर बढ़ चली है। कांग्रेस पार्टी की नीतियों में हाल फिलहाल में जो बदलाव हुए हैं उसको देखकर यह कहा जा सकता है। हाल के कुछ फैसलों पर गौर करने पर इसका पता चल जाएगा कि आखिर हो क्या रहा है। क्रिकेटर से नेता बने नवजोत सिंह सिद्धू को जिस प्रकार विरोध के बावजूद कमान दी गई उससे यह संकेत साफ है कि पार्टी कुछ अलग सोच रही है। पार्टी में अब उन लोगों को भी महत्वपूर्ण पदों पर बिठाने से गुरेज नहीं जो हाल में ही पार्टी में शामिल हुए हैं। सिद्धू को पंजाब कांग्रेस की कमान, क्या मायने नवजोत सिद्धू की पंजाब कांग्रेस के प्रमुख के रूप में नियुक्ति गांधी भाई-बहनों की मंजूरी यह एक ऐसे बड़े बदलाव का संकेत है जहां अब तक पार्टी संगठन में 'वफादारी' को तरजीह दी जाती थी। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं और मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के विरोध के बावजूद सिद्धू का प्रमोशन उस एक पैटर्न का हिस्सा है जिस पर कांग्रेस आगे बढ़ रही है। पंजाब कांग्रेस के नेताओं के भीतर से यह बात निकल कर आई कि पार्टी के भीतर महत्वपूर्ण पद किसी पुराने कांग्रेसी को ही मिलना चाहिए। सिद्धू को लेकर यह बयान भी आया कि वो अभी हाल ही में आए हैं कुछ मेहनत करें। सिद्धू को तमाम विरोध के बावजूद कमान सौंप दी गई और वो कारण भी काम नहीं आया कि वो पुराने कांग्रेसी नहीं हैं। विरोध के बावजूद यहां भी बदलाव सिद्धू ही नहीं दक्षिण के एक राज्य में भी ऐसा एक बदलाव देखने को मिला है। तेलंगाना के भीतर भी कांग्रेस अध्यक्ष को लेकर घमासान था। बमुश्किल दो हफ्ते पहले, कांग्रेस ने तमाम विरोध प्रदर्शनों को खारिज करते हुए रेवंत रेड्डी को तेलंगाना कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त किया। रेड्डी अक्टूबर 2017 में तेलुगु देशम पार्टी से कांग्रेस में शामिल हुए थे। 53 साल के रेवंत रेड्डी का तेलंगाना प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनना इसलिए भी चौंकाने वाला है क्योंकि उन्होंने आरएसएस के अनुषंगिक संगठन- अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से अपना राजनीतिक सफर शुरू किया था। कांग्रेस में आने से पहले उन्होंने राज्य के दो अन्य दलों में भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। वह टीआरएस में भी रहे और तेलगुदेशम में भी। सिद्धू या रेवंत रेड्डी पहले कांग्रेस में इतना जल्दी यह संभव नहीं था कि दूसरे दल से आए किसी नेता को राज्य की कमान इतनी जल्दी सौंप दी जाए। यह उस एक एक पैटर्न का हिस्सा है, जहां कांग्रेस नए लोगों को क्षेत्रीय स्तर पर आगे बढ़ा रही है जो हाल तक एक पार्टी के भीतर निषेध था। लेटर एंट्री के लिए प्रशांत किशोर से भी चल रही बात 'लेटरल एंट्री' के तहत चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर को कांग्रेस पार्टी के भीतर कोई बड़ा पद मिल सकता है। हालांकि यह इस बात पर निर्भर करेगा कि वो पार्टी से जुड़ने को राजी होते हैं या नहीं। पिछले दिनों ही उनकी पार्टी को पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी से बातचीत हुई थी। जिसके बाद इस बात के कयास लगने शुरू हो गए कि वो भी जल्द कांग्रेस से जुड़ सकते हैं। पार्टी से कुछ साल पहले ही जुड़ने वाले हार्दिक पटेल भी गुजरात अध्यक्ष पद के प्रबल दावेदार हैं। पाटीदार आंदोलन के रूप में राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त करने वाले युवा नेता प्रमोशन न मिलने से AAP में जाने की खबरें आई। हालांकि वो इस वक्त प्रदेश के कार्यकारी अध्यक्ष हैं। पार्टी से जुड़े उन्हें भी ज्यादा वक्त नहीं हुआ है। इससे पहले कांग्रेस ने नाना पटोले को महाराष्ट्र कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त किया था। वो 2014 में बीजेपी के टिकट पर लोकसभा सांसद चुने गए, उन्होंने पीएम मोदी के खिलाफ बगावत की और 2018 में AICC में शामिल हो गए। यह कुछ ऐसे बदलाव हैं जिसको देखकर यह कहा जा सकता है कि पार्टी को अब लेटरल एंट्री वाले लोगों को भी महत्वपूर्ण पद देने में कोई ऐतराज नहीं है। राहुल गांधी ने भी पिछले दिनों बातचीत में कहा था पार्टी के बाहर के निडर लोगों को पार्टी के भीतर लाने की जरूरत है।


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क्या बदल रही है कांग्रेस? पंजाब में सिद्धू और तेलंगाना में रेवंत, राहुल-प्रियंका की सहमति के बाद टूट रही परंपरा क्या बदल रही है कांग्रेस? पंजाब में सिद्धू और तेलंगाना में रेवंत, राहुल-प्रियंका की सहमति के बाद टूट रही परंपरा Reviewed by Fast True News on July 20, 2021 Rating: 5

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