ads

कांग्रेस में कश्मीर की आवाज रहे आजाद का दिल का जख्म कैसे भरेगे सोनिया-राहुल?

नई दिल्ली कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम गुलाम नबी आजाद के के नाम संगठन में बदलाव करने वाली चिट्ठी की खबर ने सबको हैरत में डाल दिया था। कांग्रेस और गांधी परिवार के वफादार माने जाने वाले आजाद के दस्तखत चिट्ठी पर थे। संजय गांधी के समय में राजनीति शुरू करने वाले इस दिग्गज कांग्रेसी नेता हालांकि चिट्ठी पर सफाई दी लेकिन तबतक यमुना में काफी पानी बह चुका था। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा ने उनपर निशाना साध लिया था। कश्मीर में कांग्रेस की आवाज माने जाने वाले आजाद का राज्य में वैसे तो जनाधार नहीं है लेकिन वह राज्य से पार्टी की आवाज माने जाते हैं। अब ऐसे में सवाल उठता है कि सोनिया और राहुल आखिर आजाद के दिल पर जो गहरे जख्म लगे हैं वह कैसे भरेंगे। कश्मीर में कांग्रेस की आवाज हैं आजाद राजनीति में प्रवेश करने के बाद से आजाद ने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। केंद्रीय मंत्री, जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री से लेकर पार्टी के महासचिव जैसे पदों पर वह बैठे। फिलहाल राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष आजाद ने 1980 से लेकर आजतक कांग्रेस मुख्यालय 24 अकबर रोड में जमकर छाप छोड़ी। जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटने का आजाद ने किया था बड़ा विरोध गुलाम नबी आजाद ने कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाने का बड़ा विरोध किया था। उन्होंने राज्यसभा में केंद्र से इस फैसले की जमकर आलोचना की थी। आजाद ने कहा था, ‘जम्मू-कश्मीर को एक सूत्र में बांधकर 370 ने रखा था लेकिन बीजेपी की सरकार ने सत्ता के नशे में और वोट हासिल करने के लिए राजनीति, संस्कृति और भूगोल से भिन्न तरह के राज्य जम्मू-कश्मीर में एक झटके में तीन-चार चीजों को खत्म कर दिया। यह हिंदुस्तान की तारीख में काले शब्दों में लिखा जाएगा।’ आजाद ने कहा, ‘370 को खत्म कर दिया और इतना ही नहीं राज्य को बांट दिया गया। जम्मू-कश्मीर में अब उप राज्यपाल होगा। यह तो कभी सपने में नहीं सोचा जा सकता था कि एनडीए सरकार यहां तक जाएगी कि जम्मू-कश्मीर राज्य का अस्तित्व खत्म कर देगी।’ तो विरोधी जमात में क्यों खड़े हुए आजाद? तो फिर ऐसा क्या हो गया कि आजाद विरोधियों की जमात में खड़े हो गए? 2002 में सोनिया गांधी ने आजाद को जम्मू-कश्मीर कांग्रेस का चीफ बनाकर राज्य में भेज दिया। हिंसाग्रस्त इस राज्य में पार्टी का संगठन बिल्कुल जमीन पर था। आजाद का अपने घरेलू राज्य में कोई जनाधार नहीं था और वह एक तरह से मुश्किल हालात का सामना करने पहुंचे थे। जिस समय आजाद को कश्मीर भेजा गया वह उस समय पार्टी के महासचिव थे। उनको अचानक से कश्मीर भेजा जाना कई लोगों को चौंका दिया था। हालांकि 5 साल बाद वह राज्य के सीएम बने। आर्टिकल 370 पर पार्टी के रुख से नाराज थे आजाद? कश्मीर के जहीन नेता की छवि वाले आजाद ने हालांकि राज्य में आर्टिकल 370 हटाने का विरोध किया था लेकिन उन्हें इस बात की कसक हमेशा रही कि उनकी पार्टी ने इस मुद्दे पर वैसा साथ नहीं दिया जैसा देना चाहिए था। हालांकि पार्टी के कई नेता यह जानकार चकित थे कि आर्टिकल 370 हटाने के बाद क्यों आजाद को नजरबंद नहीं किया गया? वरिष्ठ नेताओं पर राहुल के हमले से असहज हुए आजाद? राहुल भले ही पार्टी के अध्यक्ष नहीं हों लेकिन उनकी पार्टी में पकड़ कमजोर नहीं हुई है। कई मौकों पर वह पार्टी के वरिष्ठ नेताओं पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से निशाना साध चुके हैं। आजाद जैसे नेता, जिनकी पूर्व पीएम राजीव गांधी से इतनी छनती थी कि एक बार उन्होंने कहा था कि वह राजीव के साथ 1,000 घंटे निजी तौर पर वक्त बिता चुके हैं, ऐसे में उनके लिए यह स्थिति असहज करने वाली थी। भविष्य की सता रही है चिंता जिस तरह से पीएम नरेंद्र मोदी युग में कांग्रेस कमजोर हुई है उसमें आजाद को अपने भविष्य की चिंता भी सता रही होगी। राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष आजाद का कार्यकाल अगले साल खत्म हो रहा है और जिस तरह बुजुर्ग नेताओं पर राहुल निशाना साध रहे थे उसमें उनको अपने भविष्य को लेकर असमंजस दिख रहा होगा।


from India News: इंडिया न्यूज़, India News in Hindi, भारत समाचार, Bharat Samachar, Bharat News in Hindi https://ift.tt/34uZuD7
कांग्रेस में कश्मीर की आवाज रहे आजाद का दिल का जख्म कैसे भरेगे सोनिया-राहुल? कांग्रेस में कश्मीर की आवाज रहे आजाद का दिल का जख्म कैसे भरेगे सोनिया-राहुल? Reviewed by Fast True News on August 26, 2020 Rating: 5

No comments:

ads
Powered by Blogger.