जीत का गणित: किससे छीनने होंगे कितने वोट
नई दिल्लीइस बार के दिल्ली विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज करने के लिए किस पार्टी को कितनी मशक्कत करनी पड़ेगी? इस सवाल का जवाब इस बात पर निर्भर करता है कि हम इसे किस संदर्भ में देखते हैं। अगर पिछले विधानसभा चुनाव की नजर से देखें तो बीजेपी को आम आदमी पार्टी (आप) को शिकस्त देने के लिए बहुत पसीना बहाना होगा। अगर 2017 के निकाय चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव को याद करें तो मामला उल्टा पड़ रहा है। 2015 चुनाव के लिहाज से 2015 के पिछले विधानसभा चुनाव में आप को 54.6% वोट मिले थे जिसके दम पर उसने 32.8% वोट पाने वाली बीजेपी और सिर्फ 9.7% वोट पाने वाली कांग्रेस को तगड़ी शिकस्त दी थी। अगर इस लिहाज से सोचें तो आप को टक्कर देने के लिए बीजेपी को अपने खाते में कम-से-कम 10.9% ज्यादा वोट लाना होगा। दूसरे शब्दों में कहें तो बीजेपी को आप के 10.9% वोटरों को अपने पाले में लाना होगा। तब जाकर दोनों पार्टियों को 43.7% (54.6 - 10.9 और 32.8 + 10.9) वोट आएंगे। यह तो माना जा रहा है कि आप के कुछ मतदाता इस बार पाला बदलेंगे, लेकिन उनका एक हिस्सा ही बीजेपी में जाएगा जबकि कुछ कांग्रेस एवं अन्य पार्टियों में। तब बीजेपी के लिए दिल्ली फतह का जरूरी आंकड़ा और भी बढ़ जाएगा। निकाय चुनाव के लिहाज से दूसरी तरफ, अगर हम 2017 के निकाय चुनाव के आंकड़ों पर गौर करें तो बीजेपी उस चुनाव में 36.1% वोट हासिल कर आप (26.2%) और कांग्रेस (21.1%) से आगे निकली थी। ऐसे में आप को बीजेपी के महज 5% मतदाताओं को रिझाना होगा। यानी, आप के सामने बीजेपी के मुकाबले आधी चुनौती है। लोकसभा चुनाव के लिहाज से 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी और उसके प्रतिद्वंदियों के बीच का अंतर 2015 में आप को मिली बढ़ते से भी ज्यादा है। पिछले लोकसभा चुनाव में दिल्ली के 56.9% मतदाताओं ने बीजेपी का समर्थन किया था जबकि कांग्रेस 22.6% वोट पाकर दूसरे और आप 18.2% वोट के साथ तीसरे नंबर पर रही थी। कांग्रेस कहीं नहीं चूंकि हर दृष्टि से कांग्रेस दिल्ली फतह की दौड़ में कहीं नहीं टिक रही है, ऐसे में इस पर विचार करते हैं कि आप की सत्ता वापसी की राह की मुश्किल कितनी बड़ी है। लोकसभा चुनाव में हुई वोटिंग के लिहाज से देखें तो आप को दिल्ली की सत्ता बचाने के लिए बीजेपी के 19.4% वोटरों को अपनी तरफ करना होगा। तब जाकर दोनों पार्टियों के बीच 37.5%-37.6% की हिस्सेदारी होगी। हर पार्टी के लिए कड़ी चुनौती 2017 के निकाय चुनाव को छोड़ दें तो किसी भी पार्टी के लिए बाकी कोई भी समीकरण हल करना आसान नहीं है। हालांकि बीजेपी और आप के लिए खुशखबरी यह है कि दोनों ने अतीत में ऐसा कर दिखाया है- 2015-17 के बीच बीजेपी ने और 2014-15 के बीच आप ने। नए मतदाताओं के दम पर हो सकता है करिश्मा पिछले चुनावों के मुकाबले इस बार वोट शिफ्टिंग की चुनौती इसलिए आसान हो सकती है क्योंकि दिल्ली में हर चुनाव में नए वोटर बड़ी तादाद में जुड़ते हैं। 2015 से 2019 के बीच मतादाताओं की तादाद 1 करोड़ 33 लाख 10 हजार से बढ़कर 1 करोड़ 43 लाख 30 हजार हो गई थी। यानी सिर्फ चार वर्षों में 10.2% का इजाफा। 2019 से अब तक 3 लाख 70 हजार वोटर और बढ़ चुके हैं और अब तादाद 1 करोड़ 47 लाख तक पहुंच चुकी है। नए वोटरों में पहली बार वोट डालने वालों की तादाद सबसे ज्यादा है जबकि बहुत से नए वोटर देश के अन्य हिस्सों से रोजगार की तलाश में दिल्ली आए हैं। क्या ये दिल्ली की चुनावी तस्वीर बदल सकते हैं?
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जीत का गणित: किससे छीनने होंगे कितने वोट
Reviewed by Fast True News
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February 07, 2020
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