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हर साल 1100 मौतें, यूं 'बीमार' होता गया कोटा

जयपुर राजस्थान के स्थित में नवजात बच्चों की बड़ी संख्या में मौत ने देशभर के होश फाख्ता कर दिए। पिछले एक महीने में 107 नवजात इस अस्पताल में दम तोड़ चुके हैं। हालांकि, हजारों माता-पिता ने यह भी देखा कि उनके बच्चों की मौत महज इसलिए हो रही है क्योंकि नर्सिंग स्टाफ और डॉक्टरों को जो प्राथमिक चीजें या उपकरण मुहैया कराए जाने चाहिए, वे अस्पताल में उपलब्ध ही नहीं हैं। वर्ष 2018 में ख़तरे की घंटी बजी थी लेकिन उस पर किसी ने भी गौर नहीं किया। दरअसल, उस वक्त हॉस्पिटल की एक सोशल ऑडिट में यह खुलासा हुआ था कि अस्पताल के 28 में से 22 नेबुलाइजर्स काम ही नहीं कर रहे हैं। इनफ्यूजन पंप, जिनका इस्तेमाल नवजात बच्चों को दवा देने में किया जाता है, उनमें 111 में से 81 काम ही नहीं कर रहे हैं। बात की जाए लाइफ सपोर्ट मशीनों की तो 20 में से सिर्फ 6 ही इस्तेमाल लायक बची थीं। कुल मिलाकर, बड़ी संख्या में उपकरण खराब हो चुके थे। होश फाख्ता कर देगी बच्चों की मौतों की संख्या अब बात करते हैं बच्चों की मौतों के आकड़ों की। वर्ष 2019 में अस्पताल में 16,915 नवजात भर्ती हुए, जिसमें से 963 की मौत हो गई। वर्ष 2018 की बात की जाए तो 16,436 बच्चों में 1005 नवजात की मौत हो गई थी। 2014 से यह संख्या लगभग 1,100 प्रति वर्ष है। मृत्यु दर को नीचे लाने के लिए डॉक्टरों के सामने सबसे बड़ी दिक्कत क्या है, उसे भी जानना जरूरी है। पढ़ें: न उपकरण, न साफ-सफाई, चूहों से भी संकटन सिर्फ स्टाफ की कमी है बल्कि उनके पास जो उपकरण मौजूद होने चाहिए, वे भी नहीं हैं। उपलब्ध उपकरणों में से भी ज्यादातर काम करने की हालत में ही नहीं हैं। इमर्जेंसी के वक्त ऐसी दिक्कतों का डॉक्टरों और नर्सिंग स्टाफ को सामना करना पड़ता है। बुनियादी ढांचा चरमरा रहा है। एक बिस्तर पर तीन बच्चों का इलाज, यह अस्पताल की सामान्य प्रक्रिया के तौर पर देखा जाता है। कई बार तो मरीजों को चूहों द्वारा काटने की वजह से स्थिति और भी खराब हो जाती है। साफ-सफाई के नाम पर अस्पताल बदहाली से जूझ रहा है। उत्तर प्रदेश के रहने वाले मनीष कुमार, जिनका बच्चा यहां पर भर्ती था, वह कहते हैं, 'एनआईसीयू में जिस छेद से चूहे घुस आते थे, फिलहाल उसे तो बंद कर दिया गया है।' पढ़ें: जोधपुर के अस्पतालों में भी हाल बदहाल जोधपुर के उम्मेद अस्पताल और एमडीएम हॉस्पिटल की हालत बहुत ज्यादा बेहतर नहीं है। यहां दिसंबर महीने में एनआईसीयू और पीआईसीयू में बच्चों की कुल मौतों की संख्या 146 है। एसएन मेडिकल कॉलेज से प्राप्त आकड़ों के मुताबिक, इन दोनों ही अस्पतालों में दिसंबर महीने में 4,689 बच्चों को भर्ती कराया गया था। इनमें से 3,002 नवजात थे। इलाज के दौरान कुल 146 बच्चों, जिनमें से 102 नवजात थे, की मौत हो गई।


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हर साल 1100 मौतें, यूं 'बीमार' होता गया कोटा हर साल 1100 मौतें, यूं 'बीमार' होता गया कोटा Reviewed by Fast True News on January 04, 2020 Rating: 5

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