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पवार ही नहीं, इन चाचा-भतीजों में भी पड़ी फूट

नई दिल्ली महाराष्ट्र में शुक्रवार की देर रात अजित पवार ने अपने ही चाचा शरद पवार का सारा सियासी गणित बिगाड़ दिया। महाराष्ट्र के चुनाव में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत न मिलने के बाद शरद पवार किंग मेकर के रूप में उभरे थे। इतना तय था कि महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री वही होगा, जिसे शरद पवार चाहेंगे। शुक्रवार शाम शरद पवार ने ऐलान किया कि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे होंगे, लेकिन सुबह तस्वीर बदली हुई थी। अजित पवार बीजेपी के पाले में जा चुके थे और बीजेपी सरकार में डिप्टी सीएम की शपथ ले चुके थे। अजित पवार की अपनी चाचा से नाराजगी इस बात को लेकर कही जाती है कि एक समय वह अपने चाचा की सियासत के राजनीतिक वारिस माने जाते थे। लेकिन जब शरद पवार की बेटी सुप्रिया राजनीति में आईं तो वहां से गणित बदल गया। सुप्रिया अपने पिता की राजनीतिक विरासत को सम्भालने के लिए कदम बढ़ाने लगीं और यहीं से चाचा-भतीजे के बीच टकराव की सियासत शुरू हुई। वैसे चाचा-भतीजे की यह लड़ाई राजनीति में कोई पहली नहीं है। राजनीति में चाचा और भतीजे के बीच टकराव के कई दूसरे उदाहरण भी मौजूद हैं। बाला साहब-राज ठाकरे महाराष्ट्र में शरद पवार जिस तरह की पारिवारिक लड़ाई से जूझ रहे हैं, वैसे ही लड़ाई से एक वक्त ठाकरे परिवार भी रूबरू हो चुका है। शिवसेना के संस्थापक बाला साहब की राजनीतिक विरासत के वारिस उनके भतीजे राज ठाकरे ही माने जाते थे। राजनीतिक गलियारों में कहा जाता था कि बाला साहब के सारे गुण राज ठाकरे में हैं। उद्धव ठाकरे अपने पिता से राजनीति में उतना सीख पाए जितना उनके चचेरे भाई ने सीखा, लेकिन एक वक्त ऐसा आया जब खुद बाला साहब राज ठाकरे के बजाय अपने बेटे उद्धव ठाकरे को अपना राजनीतिक विरासत सौंपते दिखे तो राज ठाकरे बागी हो गए। आखिरकार मार्च 2006 में राज ठाकरे ने शिवसेना से अलग होते हुए महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना नाम से अलग पार्टी बना ली। शिवपाल यादव-अखिलेश यादव यूपी के सबसे बड़े राजनीतिक परिवार में चाचा-भतीजों के रास्ते अलग हो चुके हैं। मुलायम सिंह यादव की राजनीति के स्वाभाविक वारिस उनके छोटे भाई शिवपाल यादव माने जाते रहे थे। शिवपाल यादव उस वक्त सियासत में आ गए थे, जब अखिलेश यादव को जन्म भी नहीं हुआ था। 2012 के विधानसभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश यादव को जब फेस बनाया तो शिवपाल भी चौंक गए। पार्टी को बहुमत मिलने पर मुलायम सिंह यादव ने शिवपाल यादव को नजरअंदाज करते हुए अखिलेश को मुख्यमंत्री बना दिया। यहीं से टकराव की शुरुआत हुई। 2017 आते-आते चाचा-भतीजे के बीच इतनी कड़वाहट आ गई कि दोनों ही एक दूसरे को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाने का मौका तलाशने लगे। आखिरकार शिवपाल यादव को पार्टी से बाहर होना पड़ा। दुष्यंत चौटाला- अभय चौटाला हरियाणा की पॉलिटिक्स में चौटाला परिवार मजबूत जगह रखता है लेकिन यहां भी चाचा-भतीजे की लड़ाई देखने को मिली। भतीजे दुष्यंत चौटाला ने अपने चाचा अभय चौटाला को चित्त कर दिया। पिछले दिनों हुए चुनाव में दुष्यंत की पार्टी वहां मजबूती के साथ उभरी और दुष्यंत डिप्टी सीएम बन गए। इस परिवार में टकराव की शुरुआत 2013 में तब हुई जब ओमप्रकाश चौटाला और उनके पुत्र अजय चौटाला 10 साल के लिए जेल चले गए। ऐसे में पार्टी की कमान चौटाला के दूसरे पुत्र अभय चौटाला के हाथ में आ गई, लेकिन 2014 के चुनाव में अजय चौटाला के बड़े बेटे दुष्यंत चौटाला राजनीति में आए तो उनका अपने चाचा अभय के साथ टकराव शुरू हुआ और पार्टी पर कब्जे पर लड़ाई शुरू हुई। मनप्रीत बादल-प्रकाश सिंह बादल पंजाब की पॉलिटिक्स में भी चाचा-भतीजे की बीच लड़ाई देखने को मिल चुकी है। एक वक्त शिरोमणि अकाली दल में प्रकाश सिंह बादल के भतीजे मनप्रीत बादल का दबदबा हुआ करता था। लेकिन जब बादल अपने बेटे सुखबीर सिंह को तवज्जो देने लगे तो मनप्रीत को यह रास नहीं आया। उन्हें लगा कि अपने राजनीतिक भविष्य के लिए खुद ही कोई नया रास्ता तैयार करना होगा। आखिरकार उन्होंने चाचा के खिलाफ बगावत करते हुए पंजाब पीपुल्स पार्टी नाम से अलग पार्टी बना ली। 2016 में उन्होंने अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर लिया और चाचा को सत्ता से बेदखल करने में जुट गए। 2017 में राज्य में कांग्रेस की सरकार बनने पर मनप्रीत को मंत्री बनाया गया।


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पवार ही नहीं, इन चाचा-भतीजों में भी पड़ी फूट पवार ही नहीं, इन चाचा-भतीजों में भी पड़ी फूट Reviewed by Fast True News on November 24, 2019 Rating: 5

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