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भृगुनाथ का दर्द और आंकड़ों में 'उत्तम' प्रदेश की आर्थिक तस्वीर

लखनऊ गोरखपुर से योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) के मैदान में उतरने की खबर पर वहां का मूड भांपने के बाद हमारी टीम गाजीपुर जा रही थी। ठंड बहुत थी तो सैदपुर इलाके में गांव गोपालपुर के पास सड़क किनारे एक चाय दुकान के पास ब्रेक लगाई। वहां मिले भृगुनाथ यादव। किसान हैं। हमने उनसे जानना चाहा कि 2017 में अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के जाने और योगी जी के आने के बाद गोपालपुर गांव के किसानों की जिंदगी में क्या बदलाव आया? जवाब मिला कुछ खास नहीं। हां, एक बात फिर पुष्ट हुई कि यूपी की पॉलिटिक्स में सांड इतनी चर्चा में क्यों है। अयोध्या से लेकर कुशीनगर तक सभी जगह किसाने आवारा पशुओं से तबाह हैं। यही हाल भृगुनाथ भाई का भी है। वो कहते हैं, पांच साल में कुछ नहीं बदला, बाजरा बाढ़ ले गई , गेहूं सब चर गए। रात-रात भर उन्हें भगाने का काम करते हैं। हां हम गऊन की सेवा के लिए योगी जी को मानते हैं। एक बात और स्पष्ट कर दूं कि भृगुनाथ यादव से बातचीत योजनागत नहीं औचक थी। वैसे पूरे प्रदेश के सरकारी आंकड़ों से भी आपको रू-ब-रू कराएंगे और जानने की कोशिश करेंगे कि भृगुनाथ की बात में कितना दम है। अब योगी आदित्यनाथ के दावे की ओर चलते हैं। पिछले साल पांच सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लोकसभा क्षेत्र बनारस में उन्होंने दावा किया कि उत्तर प्रदेश में हर व्यक्ति की सालाना आय ( Per Capita Income In Uttar Pradesh) अगले पांच साल में पूरे देश के लोगों की औसत आय से ज्यादा हो जाएगी। इससे पहले विधानसभा के बजट सत्र में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था- यूपी का बजट 2015-16 में 11 लाख करोड़ रुपए था जो बढ़ कर 21 लाख करोड़ हो गया है। प्रति व्यक्ति आय 2015-16 में 43 हजार थी जो अब 95 हजार रुपए हो गई है। ईज ऑफ डूइंग बिजनस ( Ease Of Doing Business Index ) में दूसरे पायदान पर है। ईज ऑफ डूइंग बिजनस में यूपी चौथे पायदान से दूसरे पर आया है। इसमें कोई शक नहीं। लेकिन प्रति व्यक्ति आय की बात करें तो उत्तर प्रदेश की तुलना करते हुए बाकी राज्यों का डेटा नीति आयोग की रिपोर्ट और इकॉनमिक सर्वे से मिलता है। इसके मुताबिक 2019-20 के दौरान यूपी में एक व्यक्ति की औसत सालाना आय लगभग 70,000 रुपए थी। वहीं देश का औसत लगभग 135000 रुपए था। आय दोगुनी होने का इंतजार ये अजीब विडंबना है। आंकड़े विकास की गवाही तो देते हैं पर भीषण असमानता की ओर भी इशारा करते हैं। एक तरफ नोएडा में सैमसंग जैसी कंपनियां हजारों करोड़ रुपए का निवेश कर रही है, जेवर एयरपोर्ट से कुछ किसान मालामाल हो रहे हैं और कोई शक नहीं कि रोजगार भी मिल रहा है। दूसरी ओर गाजीपुर में भृगुनाथ अपनी आय दोगुनी होने का इंतजार कर रहा है। देश की औसत आय से आधी आमदनी उत्तर प्रदेश के लोगों की है। बीमारू राज्यों की बात करें उसमें बिहार ही यूपी से पीछे है जहां प्रति व्यक्ति आय लगभग 46000 रुपए है। मध्य प्रदेश में औसत कमाई 99763 और ओडिसा में 106804 रुपए है। ये राज्यों की विशुद्ध घरेलू उत्पाद (नेट डोमेस्टिक प्रोडक्ट) के आधार पर तैयार किया गया आंकड़ा है। उत्तर प्रदेश की आबादी ब्राजील के बराबर है जो दुनिया का पांचवा सबसे बड़ा देश है और इकॉनमी कतर के बराबर है जबकि कतर की आबादी बिजनौर के बराबर है। प्रति व्यक्ति आय कीनिया से भी कम है। कीनिया की प्रति व्यक्ति आय डॉलर में लगभग 1,56000 रुपए है। इसमें कोई दो राय नहीं कि यूपी शुद्ध घरेलू उत्पाद के मामले में कर्नाटक को पीछे छोड़ दूसरे पायदान पर आ गया है। 2019-20 में सूबे का शुद्ध घरेलू उत्पाद 16 लाख तीन हजार 83 रुपए था। इसके ऊपर सिर्फ तमिलनाडु है जिसका आंकड़ा 16 लाख 59 हजार 210 रुपए है जबकि यहां की सालाना औसत आय यूपी के से लगभग ढाई गुना ज्यादा है। यूपी के 70 हजार की तुलना में तमिलनाडु के लोगों की आय 218599 रुपए है। इसलिए जब सीएम कहें कि यूपी देश की दूसरी बड़ी इकॉनमी बनने जारी है तो फौरी तौर पर ये आंकड़े अच्छे हैं लेकिन जब सूबे का रकबा और आबादी को मिला दें तो चिंता पैदा करते हैं। 20 करोड़ से ज्यादा की आबादी को राष्ट्रीय औसत के बराबर लाने में अभी भी डबल दूरी तय करनी है। इकनॉमिक सर्वे से एक बात और साफ होती है। योगी आदित्यनाथ के पिछले पांच साल में विकास की दर बिल्कुल उसी ढर्रे पर रही जो अखिलेश यादव के कार्यकाल में थी। हमने 2012-13 से 2019-20 के बीच हर साल नेट स्टेट डोमेस्टिक प्रोडक्ट (NDP) की विकास दर का आकलन किया। इससे पता चलता है कि जब अखिलेश सत्ता में आए तो NDP 13.2 प्रतिशत की दर से बढ़ कर 2013 में 645132 करोड़ रुपए था जो साल-दर-साल बढ़ते हुए 2017 में 1009386 करोड़ हो गया। इसी साल योगी जी सत्ता में आए और साल-दर-साल लगभग अखिलेश रेट से बढ़ते हुए एनडीपी 2020 में 1603083 करोड़ हो गया। कमाई कुछ नहीं तो सेहत भी हुई खराब यही हाल प्रति व्यक्ति आय (एनडीपी के आधार पर) की है। अखिलेश आए तो 35 हजार रुपए थी। जब गए तो 52 हजार रुपए। योगी आए तो एक साल में बढ़ कर ये 58 हजार रुपए हुई। 2020 में 70 हजार रुपए है। कुछ आंकड़ों के मुताबिक 2021 में ये 75 हजार रुपए हो गई है। साफ है कि इकॉनमी की चाल योगी के आने के बाद सरपट नहीं हुई है। हां बिजनस कॉन्फिडेंस बढ़ा है और ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में छलांग इसी का नतीजा है। एग्री बेस्ड इकॉनमी में अभी लंबी दूरी तय करनी है। दूसरी ओर नॉलेज इकॉनमी को बढ़ाने के लिए सबसे जरूरी है शिक्षा। यहां भी उत्तर प्रदेश की हालत उत्तम नहीं है। जहां पूरे देश का औसत लें तो 100 में 77.7 लोग साक्षर हैं , वहीं यूपी में सिर्फ 73 लोग साक्षर हैं। पर 2017-21 के दौरान योगी सरकार भी क्लास एक से 8 तक के बच्चों के लिए कुछ खास नहीं कर पाई। ताजा आंकड़ों के मुताबिक यूपी में सकल नामांकन अनुपात 89.7 है जो केंद्रशासित प्रदेशों को छोड़ दें तो राज्यों की सूची में नीचे से तीसरे पायदान पर टिकता है। सिर्फ बिहार और नगालैंड के आंकड़े ही यूपी से कम हैं। किसी भी राज्य की आर्थिक सेहत के लिए जनता का स्वस्थ रहना भी जरूरी है। लखनऊ के भैंसाकुंड श्मशान की वो तस्वीरें अभी भी विचलित करती हैं जो कोरोना की दूसरी लहर में पूरी दुनिया ने देखी। इससे सबक लेते हुए योगी सरकार ने हेल्थ बजट बढ़ाकर 32 हजार करोड़ कर दिया है जिसके तहत 39 जिलों में मेडिकल कॉलेज खोले जाएंगे। हालांकि सुविधाओं का लाभ जनता तभी उठाती है जब जेब में पैसा हो। इंडिया स्पेंड और पीआरएस के आंकड़े बताते हैं कि उत्तर प्रदेश में औसतन एक व्यक्ति सेहत पर साल भर में मात्र 700 रुपए खर्च करता है वहीं नीति आयोग के सूचकांक में सबसे ऊपर केरल में हर शख्स 140 रुपए खर्च करता है। नीति आयोग के मुताबिक राज्य में दो लाख डॉक्टरों की कमी है। अगर जीडपी, एनडीपी, बजट के कुल आंकड़ों को देखें तो यूपी को हम टॉप पर पाते हैं लेकिन जब प्रति व्यक्ति के आंकड़े पर आते हैं तो सच्चाई पता चलती है। आखिर ये हाल है क्यों? यूपी का एक आम आदमी पैसा कमाने में पीछे क्यों है। तो ये बात बेरोजगारी के आंकड़े बता देंगे। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (CMIE) के बेरोजगारी के आंकड़ों का विश्लेषण करने से पता चला है कि यूपी, पंजाब, गोवा और उत्तराखंड में दिसंबर 2021 के आखिर में नौकरी पेशा लोगों की कुल संख्या पांच साल पहले से भी कम थी। उत्तर प्रदेश की बात करें तो यहां रोजगार चाहने वालों की कुल आबादी 14 प्रतिशत (2.12 करोड़) बढ़कर 17.07 करोड़ पहुंच गई है जो पांच साल पहले 14.95 करोड़ थी। हालांकि नौकरी कर रहे कुल लोगों की संख्या 16 लाख से ज्यादा घट गई। इसका नतीजा यह हुआ कि यूपी में रोजगार दर (ER) यानी रोजगार पाए कुल लोगों की संख्या और काम चाहने वाले लोगों की आबादी (15 साल या ऊपर) का प्रतिशत दिसंबर 2016 के 38.5 प्रतिशत से घटकर दिसंबर 2021 में 32.8 प्रतिशत पर आ गया है। पूरी रिपोर्ट नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।


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भृगुनाथ का दर्द और आंकड़ों में 'उत्तम' प्रदेश की आर्थिक तस्वीर भृगुनाथ का दर्द और आंकड़ों में 'उत्तम' प्रदेश की आर्थिक तस्वीर Reviewed by Fast True News on January 18, 2022 Rating: 5

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