संपादकीय: मौत बनाम मुआवजा... सामने कई सवाल, कोरोना आंकड़े दुरुस्त करने की जरूरत
कोरोना महामारी से हुई मौतों पर मुआवजे के दावों से जुड़े जो आंकड़े सुप्रीम कोर्ट के सामने आए हैं, उनसे कई नए सवाल खड़े हो रहे हैं। कई राज्यों में मुआवजे के लिए पेश किए गए दावों की संख्या कोरोना से मरने वालों की सरकार द्वारा बताई जा रही संख्या से आश्चर्यजनक रूप से ज्यादा है। इस अंतर के मामले में महाराष्ट्र सबसे आगे है, जहां कोरोना से हुई मौतों की सरकारी संख्या 1,41,737 है तो मुआवजे के दावों की संख्या 2,13,890 पहुंची हुई है। अनुपात के लिहाज से देखा जाए तो गुजरात में मुआवजे के दावे मृतकों की संख्या से करीब नौ गुना और तेलंगाना में सात गुना ज्यादा हैं। दोनों आंकड़ों में थोड़ा बहुत अंतर होने की संभावना पहले से जाहिर की जा रही थी। वजह यह थी कि सुप्रीम कोर्ट ने मुआवजे के दायरे को सरकार की तय की हुई परिभाषा तक सीमित न रखते हुए उसे बड़ा कर दिया था। कोर्ट के फैसले के बाद कोरोना पॉजिटिव पाए ऐसे सभी मामले मुआवजे की रेंज में आ गए जिनमें एक महीने के अंदर मौत हुई हो, चाहे वह मौत कोरोना के बजाय किसी और बीमारी से हुई हो या संबंधित व्यक्ति ने खुदकुशी की हो। ऐसे में अगर सरकार द्वारा बताई गई मौत की संख्या के मुकाबले मुआवजों के ज्यादा क्लेम आ रहे हैं तो कुछ हद तक उसे स्वाभाविक कहा जा सकता है। लेकिन दोनों के बीच इतना बड़ा अंतर सचमुच अप्रत्याशित है। इसके अतिरिक्त एक और ध्यान देने लायक बात यह है कि कुछ राज्यों में आंकड़े एकदम उलटी तस्वीर पेश करते दिख रहे हैं। पंजाब, कर्नाटक, असम और बिहार जैसे कई राज्यों में मुआवजे के लिए पेश किए गए दावों की संख्या मौत की सरकारी संख्या से काफी कम है। वैसे यह आंकड़ों की गड़बड़ी से ज्यादा लोगों में जानकारी की कमी का मामला हो सकता है। लेकिन मुआवजे के दावों की संख्या मौत के आंकड़ों से बहुत ज्यादा होना सचमुच गंभीर है। इससे इस आशंका की गुंजाइश बनती है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि मौत की संख्या को कम करके दिखाने की कोशिश हुई या मुआवजे के लिए फर्जी दावे पेश किए गए। कोरोना की दूसरी लहर के दौरान भी यह बात सामने आई थी कि बड़ी संख्या में मौतें दर्ज नहीं हो पा रही हैं। जरूरी नहीं कि ऐसा इरादतन हो, इसके पीछे सरकारी तंत्र की सीमित पहुंच और क्षमता भी जिम्मेदार हो सकती है। लेकिन चाहे किसी भी वजह से हो, अगर हमारे आंकड़े वास्तविकता से मेल खाते हुए नहीं होंगे तो ये आगे भी कई तरह की जटिलता का कारण बनते रहेंगे। भविष्य में रिसर्च के लिहाज से भी यह एक स्थायी मुश्किल बन जाएगी। इसलिए अब भी देर नहीं हुई है। अगर इन आंकड़ों को लेकर संदेह रह गए हों तो उन्हें अन्य उपलब्ध स्रोतों के जरिए क्रॉसचेक कर दुरुस्त कर लेने में ही समझदारी है।
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संपादकीय: मौत बनाम मुआवजा... सामने कई सवाल, कोरोना आंकड़े दुरुस्त करने की जरूरत
Reviewed by Fast True News
on
January 19, 2022
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