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योगी को पसंद आया फॉर्म्युला- चेहरे पर मत जाओ, अगर हटाना है तो हटाओ

योगी को मिला फॉर्म्युला!केंद्रीय मंत्रिपरिषद में विस्तार क्या हुआ, दिल्ली में यूपी के मंत्रियों की आमदरफ्त बढ़ गई है। इसकी वजह खौफ का तारी होना बताया जा रहा है। केंद्रीय मंत्रिपरिषद के फेरबदल में प्रधानमंत्री ने तमाम बड़े नाम और चेहरे वालों को ड्रॉप करने में कोई हिचक नहीं दिखाई। कई मंत्री तो ऐसे थे, जो पार्टी में अपनी वरिष्ठता और प्रधानमंत्री से अपनी नजदीकी के आधार पर कई दूसरे मंत्रियों की कुर्सी सुरक्षित बनाए रखने का वायदा किए हुए थे, लेकिन जब लिस्ट आई तो पता चला कि खुद उनकी कुर्सी चली गई। मंत्रिपरिषद फेरबदल में फॉर्म्युला रहा - चेहरे पर मत जाओ, अगर हटाना है तो हटाना है। यह मुख्यमंत्रियों के लिए आदर्श फॉर्म्युला बन गया है। यूपी में भी बहुत दिनों से फेरबदल टलता आ रहा है। इसकी वजह भी यही थी कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तय नहीं कर पा रहे थे कि किसको रखना है और किसको हटाना है। वहां भी कई बड़े नाम और चेहरे ऐसे हैं, जिनकी परफॉर्मेंस उन्हें कैबिनेट में बनाए रखने की इजाजत नहीं देती, लेकिन सवाल यही था कि उन्हें कैसे हटाया जाए? अब केंद्रीय मंत्रिपरिषद के फेरबदल के बाद से योगी की झिझक दूर हो गई है। कहा जा रहा है कि अब जब भी वहां फेरबदल होगा, कई बड़े नाम और चेहरे मंत्रिपरिषद से बाहर किए जाएंगे। इसकी आहट महसूस करते ही यूपी के मंत्रियों की दिल्ली दौड़ तेज हो गई है। एक तो वह लखनऊ के जरिए जो महसूस नहीं कर पा रहे हैं, उसे दिल्ली में महसूस करना चाहते हैं, दूसरे उन्हें जुगाड़ की भी तलाश है, जिसके जरिए उनकी कुर्सी खतरे से बाहर हो जाए।

मंत्रिपरिषद फेरबदल में फॉर्म्युला रहा - चेहरे पर मत जाओ, अगर हटाना है तो हटाना है। यह मुख्यमंत्रियों के लिए आदर्श फॉर्म्युला बन गया है। यूपी में भी बहुत दिनों से फेरबदल टलता आ रहा है। इसकी वजह भी यही थी कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तय नहीं कर पा रहे थे कि किसको रखना है और किसको हटाना है।


योगी को पसंद आया फॉर्म्युला- चेहरे पर मत जाओ, अगर हटाना है तो हटाओ

योगी को मिला फॉर्म्युला!

केंद्रीय मंत्रिपरिषद में विस्तार क्या हुआ, दिल्ली में यूपी के मंत्रियों की आमदरफ्त बढ़ गई है। इसकी वजह खौफ का तारी होना बताया जा रहा है। केंद्रीय मंत्रिपरिषद के फेरबदल में प्रधानमंत्री ने तमाम बड़े नाम और चेहरे वालों को ड्रॉप करने में कोई हिचक नहीं दिखाई। कई मंत्री तो ऐसे थे, जो पार्टी में अपनी वरिष्ठता और प्रधानमंत्री से अपनी नजदीकी के आधार पर कई दूसरे मंत्रियों की कुर्सी सुरक्षित बनाए रखने का वायदा किए हुए थे, लेकिन जब लिस्ट आई तो पता चला कि खुद उनकी कुर्सी चली गई। मंत्रिपरिषद फेरबदल में फॉर्म्युला रहा - चेहरे पर मत जाओ, अगर हटाना है तो हटाना है। यह मुख्यमंत्रियों के लिए आदर्श फॉर्म्युला बन गया है। यूपी में भी बहुत दिनों से फेरबदल टलता आ रहा है। इसकी वजह भी यही थी कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तय नहीं कर पा रहे थे कि किसको रखना है और किसको हटाना है। वहां भी कई बड़े नाम और चेहरे ऐसे हैं, जिनकी परफॉर्मेंस उन्हें कैबिनेट में बनाए रखने की इजाजत नहीं देती, लेकिन सवाल यही था कि उन्हें कैसे हटाया जाए? अब केंद्रीय मंत्रिपरिषद के फेरबदल के बाद से योगी की झिझक दूर हो गई है। कहा जा रहा है कि अब जब भी वहां फेरबदल होगा, कई बड़े नाम और चेहरे मंत्रिपरिषद से बाहर किए जाएंगे। इसकी आहट महसूस करते ही यूपी के मंत्रियों की दिल्ली दौड़ तेज हो गई है। एक तो वह लखनऊ के जरिए जो महसूस नहीं कर पा रहे हैं, उसे दिल्ली में महसूस करना चाहते हैं, दूसरे उन्हें जुगाड़ की भी तलाश है, जिसके जरिए उनकी कुर्सी खतरे से बाहर हो जाए।



ओवैसी की मुश्किल
ओवैसी की मुश्किल

ओवैसी यूपी को जितना आसान समझ रहे हैं, उतना उनके लिए है नहीं। यूपी में मुस्लिम वोट के दावेदार प्रभावी दलों ने ही उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। एसपी और बीएसपी दोनों की तरफ से कहा जा चुका है कि उनका ओवैसी की पार्टी के साथ कोई गठबंधन नहीं होगा। यूपी में ओवैसी की पार्टी के एक प्रवक्ता का पिछले दिनों बयान आया था कि अगर समाजवादी पार्टी अपने को मुसलमानों का इतना ही खैरख्वाह समझती है तो उसे यह घोषणा करनी चाहिए कि कम से कम डेप्युटी सीएम मुसलमान बनाया जाएगा। पिछले दिनों एक पार्टी की बैठक में नेताओं से कहा गया कि उन्हें मुस्लिम समुदाय के बीच से ओवैसी से यह सवाल पुछवाना चाहिए कि यूपी में मुसलमानों के लिए सत्ता में भागीदारी के मुद्दे पर चुनाव लड़ने वाले ओवैसी अपने राज्य तेलंगाना में मुसलमानों की सत्ता में भागीदारी की बात क्यों नहीं करते, जबकि वह हमेशा वहां सत्ता के साथ ही रहे हैं। पिछला चुनाव भी उन्होंने टीआरएस के साथ मिलकर लड़ा था। हालांकि मंत्रिमंडल में उनका एक भी मंत्री नहीं है और न ही ओवैसी ने वहां कोई चुनाव मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर लड़ा। क्या ओवैसी यूपी में किसी को सीएम का चेहरा बना कर चुनाव लड़ेंगे? उन्होंने यूपी में 100 सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कही है। क्या 403 सीट वाले राज्य में 100 सीटों पर चुनाव लड़ने से कोई सरकार बनती है? देखने वाली बात होगी कि ओवैसी की पार्टी की तरफ से इन सवालों पर क्या जवाब आता है? वैसे उनकी पार्टी 2017 में यूपी विधानसभा का चुनाव लड़ चुकी है। 38 सीटों पर उसके उम्मीदवार थे और जिनमें से 37 की जमानत जब्त हो गई थी।



येदियुरप्पा के बाद कौन?
येदियुरप्पा के बाद कौन?

बीएस येदियुरप्पा का सीएम पद से हटना लगभग तय माना जा रहा है। हटाए जाने के बजाय उन्होंने खुद पद छोड़ने की घोषणा करने का विकल्प चुना है। तारीख को लेकर अभी कुछ नहीं कहा जा सकता, लेकिन 26 जुलाई को उन्होंने विधायक दल की बैठक बुलाई है। हो सकता है उसमें वह पद छोड़ने का ऐलान कर दें। लेकिन पार्टी में सबसे बड़ा सवाल यह है कि येदियुरप्पा के बाद मुख्यमंत्री किसे बनाया जाए? येदियुरप्पा लिंगायत समुदाय से आते हैं और कर्नाटक की राजनीति में यह समुदाय बहुत अहम है। पहली राय तो यह थी कि किसी तरह का जोखिम लेने के बजाय अगला मुख्यमंत्री भी लिंगायत समुदाय से ही बना दिया जाए लेकिन अब एक दूसरी राय भी बन रही है। कहा जा रहा है कि पार्टी को कर्नाटक में वैसा ही प्रयोग करना चाहिए, जैसा उसने हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड में किया। हरियाणा जाट प्रभुत्व वाला राज्य माना जाता है, लेकिन पार्टी ने यहां गैर-जाट मुख्यमंत्री चुना। इसी तरह महाराष्ट्र में उसने लीक से हटकर ब्राह्मण चेहरे पर दांव लगाया था और आदिवासी बहुल झारखंड में आदिवासी मुख्यमंत्री देने के बजाय राजपूत चेहरे पर भरोसा करना बेहतर समझा था। इसी के मद्देनजर कहा जा रहा है कि कर्नाटक में भी किसी गैर-लिंगायत नेता को सीएम बनाकर देखना चाहिए। वैसे खबर यह भी है कि पद छोड़ने के लिए येदियुरप्पा ने एक शर्त यह भी रखी है कि अगला मुख्यमंत्री उनकी पसंद का होना चाहिए। उनकी पसंद क्या है, यह अभी पता नहीं। यह भी नहीं मालूम कि केंद्रीय नेतृत्व ने उनकी शर्त मंजूर की या नहीं। वैसे कर्नाटक में सबकुछ आसानी से होने वाला नहीं। आने वाले दिनों में वहां बड़ी उठापटक देखने को मिल सकती है।



'राजा' बनाम 'प्रजा'
'राजा' बनाम 'प्रजा'

एक तरफ राजस्थान में वसुंधरा राजे अपनी पार्टी के तमाम नेताओं से नाराज चल रही हैं, तो दूसरी तरफ मध्य प्रदेश में उनकी छोटी बहन यशोधरा राजे भी पार्टी में अपने को सहज नहीं रख पा रही हैं। वह शिवराज सरकार में मंत्री हैं और सरकार की कई बैठकों में अपने सहयोगी मंत्रियों के साथ उनकी लड़ाई की खबरें स्थानीय मीडिया में आ रही हैं। पिछले दिनों कैबिनेट की मीटिंग में उनकी एक अन्य मंत्री के साथ इस हद तक तू-तड़ाक हो गई कि मुख्यमंत्री को हस्तक्षेप करना पड़ा। स्थानीय मीडिया में कई बीजेपी नेताओं के ऐसे बयान पढ़ने को मिले हैं, जिनके मुताबिक यशोधरा को लगता है कि वह राजा हैं और दूसरे मंत्री उनकी प्रजा। इसलिए वह उन्हें बराबर का सम्मान देना पसंद नहीं करतीं। उनके अन्य मंत्रियों के साथ सहज न होने की एक और वजह बताई जाती है। पार्टी में वह काफी सीनियर हैं और अपनी सीनियॉरिटी के हिसाब से वह जिन मंत्रालयों की अपेक्षा कर रही थीं, वे उन्हें नहीं मिले। दूसरी तरफ, उनसे जूनियर समझे जाने वाले नेताओं को अहम मंत्रालयों का जिम्मा सौंपा गया। यह भी कहा जाता है कि सीएम के साथ उनके रिश्ते मधुर नहीं हैं। लेकिन राज्य में सिंधिया घराना जनसंघ के जमाने से पार्टी के साथ है और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में आने के बाद से जिस तरह के समीकरण बने हैं, उनमें सीएम का यशोधरा के खिलाफ मोर्चा खोलना आसान नहीं है।





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योगी को पसंद आया फॉर्म्युला- चेहरे पर मत जाओ, अगर हटाना है तो हटाओ योगी को पसंद आया फॉर्म्युला- चेहरे पर मत जाओ, अगर हटाना है तो हटाओ Reviewed by Fast True News on July 19, 2021 Rating: 5

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