ये बहुत मुश्किल था... 5 को नई जिंदगी दे गई 20 महीने की बच्ची के पापा के 'दिल की बात'

राहुल आनंद/नई दिल्ली 'यह फैसला बहुत मुश्किल था... लेकिन हमने सोचा कि बच्ची के अंतिम संस्कार के साथ उन लोगों की जिंदगी की उम्मीद भी कम हो जाएगी जो ऑर्गन के लिए इंतजार कर रहे हैं, बच्ची के साथ उनकी जिंदगी की उम्मीद भी खत्म हो जाएगी। इसलिए हमने दिल पर पत्थर रखकर अपनी मासूम बच्ची के अंगदान का फैसला किया। अब हमारी बच्ची भले नहीं रही, लेकिन मन में एक विश्वास है कि वह कहीं भी है, लेकिन अभी भी है।' ये शब्द हैं 20 महीने की धनिष्ठा के माता-पिता के, जिन्होंने अपनी बच्ची का अंगदान किया और उससे तीन लोगों को नई जिंदगी मिल गई, दो लोगों की जिंदगी रोशन हो गई और धनिष्ठा देश की बन गई। इससे पहले सूरत का ढाई साल का बच्चा सबसे कम उम्र का कैडेवर डोनर था। 8 जनवरी को बच्ची को लगी थी चोट रोहिणी निवासी धनिष्ठा के पिता आशीष कुमार ने बताया कि 8 जनवरी की घटना है। बच्ची फर्स्ट फ्लोर की बालकनी से नीचे गिर गई। उसके सिर में चोट आई थी, लेकिन एक बूंद भी खून नहीं निकला था। उसके बाकी शरीर में कहीं चोट नहीं थी। हम उसे लेकर आंबेडकर अस्पताल गए, वहां पर डॉक्टर ने उसका सीपीआर किया, ऑक्सीजन दिया और बाकी इलाज किया। बाद में कहा कि इसे हायर सेंटर लेकर जाएं। हम बच्ची को लेकर सर गंगाराम अस्पताल पहुंचे। डॉक्टर ने देखते ही बताया कि बच्ची की स्थिति नाजुक है, उसके सिर के अंदर ब्लीडिंग हुई थी, इस वजह से उसका ब्रेन काम नहीं कर रहा था। 'अस्पताल में ऑर्गन के लिए तड़पते लोगों का दर्द महसूस किया' आशीष ने बताया कि जब वह और धनिष्ठा की मां अस्पताल में थे तो लोगों को ऑर्गन के लिए तड़पते देखा, उनकी आंखों में दर्द महसूस किया। हमने ऑर्गन डोनेशन के बारे में इससे पहले कभी न सोचा और न ध्यान दिया था। लेकिन, अस्पताल में रहते हुए यह जान गया था कि ऑर्गन डोनेशन कितना जरूरी है। इस बीच हमने एक ऐसे माता-पिता को बिलखते देखा, जिनका बच्चा जन्म से ही बिना किडनी के था। इसी बीच 11 जनवरी को डॉक्टर ने हमें बताया कि हमारी धनिष्ठा ब्रेन डेड हो गई है, अब वह कभी नहीं उठेगी। ऐसा लगा कि हमारी दुनिया ही उजड़ गई हो। 'ताकि हमारी जिंदगी ना रहे तो हम किसी को जीवन देकर जाएं' उन्होंने कहा कि इसके बाद से हमें अस्पताल में ऑर्गन डोनेशन के लिए काउंसलिंग की गई। हम पहले ही लोगों का दर्द देख चुके थे। मैं और मेरी पत्नी ने आपस में बात की, हमने सोचा कि यहां से जब हम अपनी बच्ची को लेकर जाएंगे तो उसके अंतिम संस्कार के साथ अंग भी खत्म हो जाएंगे। लेकिन जिन लोगों को ऑर्गन की जरूरत है अगर उन्हें ना मिला तो एक तरह से उनकी जिंदगी भी इसके साथ खत्म हो जाएगी। इसलिए बिना संशय के हमने ऑर्गन डोनेशन का फैसला किया। धनिष्ठा उनकी छोटी बेटी थी, इस कपल के 5 साल का एक बेटा भी है। उन्होंने कहा कि अब हम दोनों ने भी ऑर्गन डोनेशन के लिए अपना रजिस्ट्रेशन कराने का फैसला किया है, ताकि हमारी जिंदगी ना रहे तो हम किसी को जीवन देकर जाएं। पैरंट्स के फैसले की हो रही तारीफ सर गंगाराम अस्पताल प्रशासन ने बताया कि बच्ची का हार्ट, लीवर, दोनों किडनी और दो कॉर्निया डोनेट किया गया। अपोलो अस्पताल में एक बच्चे में हार्ट ट्रांसप्लांट किया गया। जबकि लिवर आईएलबीएस अस्पताल में एक बच्चे में ट्रांसप्लांट किया गया। वहीं, गंगाराम अस्पताल में एक अडल्ट को धनिष्ठा की दोनों किडनी लगाई गई। चूंकि बच्ची की किडनी का साइज कम था, इसलिए दोनों किडनी मिलाकर एक अडल्ट में लगाया गया। इससे तीन लोगों को नया जीवन मिल गया। वहीं, बच्ची के कॉर्निया से अब दो लोगों की आंखों को नई रोशनी मिलेगी और उनकी जिंदगी भी संवर जाएगी। डॉक्टर ने कहा कि इतनी छोटी उम्र की बच्ची की बॉडी से ऑर्गन निकालना और इसे दूसरे में ट्रांसप्लांट करना भी एक चुनौती थी, लेकिन जो फैसला परिवार ने किया उसके लिए वो बेहद तारीफ के काबिल हैं। 'ऑर्गन डोनेशन की कमी से हर साल औसतन 5 लाख भारतीयों की मौत' सर गंगाराम अस्पताल के चेयरमैन डॉक्टर डी. एस. राणा ने बताया कि इस बच्ची के परिवार का यह नेक काम वाकई काबिले तारीफ है और इससे सभी लोगों को प्रेरणा लेनी चाहिए। प्रति मिलियन में मात्र 0.26 की दर से भारत में अंगदान की दर दुनिया में सबसे कम है। ऑर्गन डोनेशन की कमी के कारण हर साल औसतन पांच लाख भारतीयों की मौत हो जाती है।
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ये बहुत मुश्किल था... 5 को नई जिंदगी दे गई 20 महीने की बच्ची के पापा के 'दिल की बात'
Reviewed by Fast True News
on
January 14, 2021
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