एक कानून, जिसकी जद में आए 3-3 मुख्यमंत्री
श्रीनगर जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35A के खात्मे के बाद से नजरबंद चल रहे राज्य के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला के खिलाफ गुरुवार को प्रशासन ने जन सुरक्षा कानून (पीएसए) के तहत मामला दर्ज कर लिया। पीएसए लागू होने के बाद अब इन दोनों नेताओं को बिना किसी मुकदमे के दो साल तक हिरासत में रखा जा सकता है। उमर के पिता और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला भी इसी कानून के तहत अपने घर में हिरासत में हैं। बता दें कि इस 'बेरहम कानून' को उमर अब्दुल्ला के दादा और फारूक अब्दुल्ला के पिता शेख अब्दुल्ला ने ही बनाया था। इससे पहले उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती की 6 महीने की एहतियातन हिरासत की अवधि गुरुवार को खत्म हो रही थी लेकिन पीएसए लागू होने के बाद अब दोनों नेताओं को लंबे समय तक हिरासत में रहना होगा। महबूबा और उमर के खिलाफ पीएसए लागू करने के फैसले का जहां विपक्ष आलोचना कर रहा है, वहीं बीजेपी इस फैसले को सही ठहरा रही है। आइए जानते हैं कि क्या है पीएसए और इसका इतिहास... क्या है जन सुरक्षा कानून साल 1978 में उमर अब्दुल्ला के दादा और फारुक अब्दुल्ला के पिता शेख अब्दुल्ला ने इस कानून को इमारती लकड़ी की तस्करी को रोकने और तस्करों को 'प्रचलन से बाहर' रखने के लिए जम्मू-कश्मीर में लागू किया था। जन सुरक्षा अधिनियम उन लोगों पर लगाया जा सकता है, जिन्हें लोगों की सुरक्षा और शांति के लिए खतरा माना जाता हो। यह देश के अन्य राज्यों में लागू राष्ट्रीय सुरक्षा कानून की तरह से है। वर्ष 2010 में इसमें संशोधन किया गया था, जिसके तहत बगैर ट्रायल के ही लोगों को कम से कम 6 महीने तक जेल में रखा जा सकता है। राज्य सरकार चाहे तो इस अवधि को बढ़ाकर दो साल तक भी किया जा सकता है। दो साल तक हो सकती है हिरासत पीएसए के तहत दो प्रावधान हैं-‘लोक व्यवस्था’ और ‘राज्य की सुरक्षा को खतरा’। पहले प्रावधान के तहत किसी व्यक्ति को बिना मुकदमे के छह महीने तक और दूसरे प्रावधान के तहत किसी व्यक्ति को बिना मुकदमे के दो साल तक हिरासत में रखा जा सकता है। यह कानून किसी व्यक्ति पर दंड स्वरूप नहीं लगाया जाता बल्कि सुरक्षा के लिहाज से लगाया जाता है। यह कानून मंडलीय कमिश्नर या डीएम के आदेश पर ही लागू किया जाता है। पीएसए क्यूं है बेरहम कानून? जन सुरक्षा कानून को अक्सर 'बेरहम' कानून कहा जाता है। पीएसए सरकार को 16 वर्ष से अधिक उम्र के किसी भी व्यक्ति पर बिना आरोप या मुकदमा चलाए दो साल की अवधि हेतु बंदी बनाने की अनुमति देता है। यदि जम्मू-कश्मीर सरकार को यह आभास हो कि किसी व्यक्ति के कृत्य से राज्य की सुरक्षा को खतरा है तो उसे 2 वर्षों तक प्रशासनिक हिरासत में रखा जा सकता है। साथ ही यदि किसी व्यक्ति के कृत्य से सार्वजनिक व्यवस्था को बनाए रखने में कोई बाधा उत्पन्न होती है तो उसे 1 वर्ष की प्रशासनिक हिरासत में लिया जा सकता है। यह कानून उस व्यक्ति पर भी लागू किया जा सकता है जो पहले से ही पुलिस हिरासत में है। यही नहीं किसी व्यक्ति को अगर कोर्ट से जमानत मिली हो या बरी किया गया हो तो तत्काल उसके खिलाफ पीएसए लगाया जा सकता है। पुलिस हिरासत के विपरीत पीएसए के तहत हिरासत में रखे गए व्यक्ति को 24 घंटे के अंदर कोर्ट में पेश करने की बाध्यता भी नहीं है। हिरासत में रखा गया व्यक्ति जमानत के लिए आपराधिक अदालत नहीं जा सकता और वकील भी नहीं रख सकता है। इस हिरासत को केवल बंदी बनाए गए व्यक्ति के परिवार के किसी सदस्य द्वारा बंदी प्रत्यक्षीकरण कानून के तहत चुनौती दी जा सकती है। हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट को ही इस मामले में सुनवाई का अधिकार है। अगर कोर्ट हिरासत को खत्म कर देती है तो सरकार को दोबारा पीएसए लगाने पर कोई रोक नहीं है। पीएसए लगाने के बाद डीएम को संबंधित व्यक्ति को लिखित में इसका कारण बताना जरूरी होता है। कश्मीर में पीएसए का जमकर दुरुपयोग जम्मू-कश्मीर में शुरुआत से ही इस कानून का जमकर दुरुपयोग किया गया और वर्ष 1990 तक तत्कालीन सरकारों द्वारा राजनीतिक विरोधियों को हिरासत में लेने के लिए इसका उपयोग किया गया। जुलाई 2016 में आतंकवादी बुरहान वानी के सुरक्षा बलों के हाथों मारे जाने के बाद कश्मीर में पत्थरबाजी शुरू हो गई थी। इसके बाद सरकार ने अलगाववादियों पर नकेल कसने के लिए पीएसए को लागू किया। अगस्त 2018 में राज्य के बाहर भी पीएसए के तहत व्यक्तियों को हिरासत में लेने की अनुमति देने के लिए अधिनियम में संशोधन किया गया था। पिछले साल 82 साल के फारूक अब्दुल्ला को पीएसए के तहत हिरासत में लिया गया था। फारूक अब्दुल्ला पहले पूर्व सीएम हैं जिन्हें इस कानून के तहत हिरासत में लिया गया था। विपक्ष ने केंद्र पर बोला हमला महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला के खिलाफ पीएसए के तहत मामला दर्ज किए जाने के बाद विपक्षी दलों ने तीखी प्रतिक्रिया जताई है। पीडीपी ने कहा कि इस तरह के ‘अलोकतांत्रिक कदम’ उठाकर केंद्र लोगों के धैर्य की परीक्षा ले रहा है। महबूबा मुफ्ती के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से पीएसए लगाए जाने की जानकारी देते हुए लिखा गया है, 'इस तानाशाही सरकार से राज्य के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों पर पीएसए जैसा कठोर कानून लगाने की उम्मीद कर सकते हैं, जिसने 9 साल के बच्चे पर भी देशद्रोही टिप्पणी के लिए केस किया हो। देश के मूल्यों को अपमान किया जा रहा है, ऐसे में हम कब तक दर्शक बने रहेंगे।' बता दें कि महबूबा का ट्विटर अकाउंट उनकी बेटी संभालती हैं। कांग्रेस के निशाने पर मोदी कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने कहा, 'मैं उमर और महबूबा के खिलाफ पीएसए लगाए जाने के फैसले से सदमे में हूं और अंदर हिल गया हूं। लोकतंत्र में बिना आरोप के हिरासत में लेना सबसे घृणित बात है। जब अन्यायपूर्ण कानून पारित किए जाते हैं या अन्यायपूर्ण कानून लगाए जाते हैं, लोगों के पास शांतिपूर्ण तरीके से विरोध के अलावा क्या विकल्प बचता है? पीएम मोदी कहते हैं कि विरोध प्रदर्शन से अव्यवस्था फैलेगी और संसद और विधानसभा से पारित कानून को सभी को मानना चाहिए। वह (मोदी) इतिहास और महात्मा गांधी, मार्टिन लूथर किंग और नेल्सन मंडेला को भूल जाते हैं। अन्यायपूर्ण कानून का शांतिपूर्ण और सविनय अवज्ञा आंदोलन के जरिए विरोध किया जाना चाहिए। यह सत्याग्रह है।'
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एक कानून, जिसकी जद में आए 3-3 मुख्यमंत्री
Reviewed by Fast True News
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February 06, 2020
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